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ख्वाहिशों का बोझ!

ख्वाहिशों का बोझ!

पराई आग पे रोटी  सेंकने नहीं आता,  
रेजा-रेजा  मुझे बिखरने नहीं आता। 
कत्ल कर देती हैं वे अपनी नजरों से,  
इल्जाम उनपे मुझे लगाने नहीं आता। 

गुनाह की रेत में मत दबा मेरा वजूद,  
झूठ  की आग  में जलने नहीं आता।  
मत छीनों जरूरत  की चीजें मुझसे, 
ख्वाहिशों का बोझ ढोने नहीं आता।  

ओढ़कर सोता हूँ सुकूँ की रात छत पे,  
मुझे  रातभर पैसे  गिनने  नहीं आता।  
सिसक रही हवाएँ कल -कारखानों से,  
कुदरत  का  दिल  दुखाने  नहीं आता।  

नर्म लफ्जों से बात करने में क्या हर्ज,  
हँसती  रात  को  रुलाने  नहीं आता। 
सूरज-चाँद- सितारों में छेद मत करो,  
कुछ को रोशनी में नहाने नहीं आता। 

मत सजाओ कोई गगन मिसाइल से,  
बहुतों को  खूँ  में  नहाने  नहीं आता। 
शाख- ए- अमन मत तोड़  अमेरिका,
तुझको  दुनिया  में  रहने  नहीं आता।  

रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई

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5 Comments

Sachin dev

07-Jan-2023 02:23 PM

Well done

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शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Abhinav ji

07-Jan-2023 08:12 AM

Very nice 👍👍

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